"फिर वह गर्भवती हो गई तथा उस (गर्भ को लेकर) दूर स्थान पर चली गयी। फिर प्रसव पीड़ा उसे एक खजूर के तने तक लायी, कहने लगीः क्या ही अच्छा होता, मैं इससे पहले ही मर जाती और भूली-बिसरी हो जाती। तो उसके नीचे से पुकारा कि उदासीन न हो, तेरे पालनहार ने तेरे नीचे एक स्रोत बहा दिया है। और हिला दे अपनी ओर खजूर के तने को, तुझपर गिरायेगा वह ताज़ी पकी खजूरें। अतः, खा, पी तथा आँख ठण्डी कर। फिर यदि किसी पुरुष को देखे, तो कह देः वास्तव में, मैंने मनौती मान रखी है, अत्यंत कृपाशील के लिए व्रत की। अतः, मैं आज किसी मनुष्य से बात नहीं करूँगी। फिर उस (शिशु ईसा) को लेकर अपनी जाति में आयी, सबने कहाः हे मरयम! तूने बहुत बुरा किया। हे हारून की बहन! तेरा पिता कोई बुरा व्यक्ति न था और न तेरी माँ व्यभिचारिणी थी। मरयम ने उस (शिशु) की ओर संकेत किया। लोगों ने कहाः हम कैसे उससे बात करें, जो गोद में पड़ा हुआ एक शिशु है? वह (शिशु) बोल पड़ाः मैं ईश्वर का भक्त हूँ। उसने मुझे पुस्तक (इन्जील) प्रदान की है तथा मुझे पैगंबर बनाया है। [4] तथा मुझे शुभ बनाया है, जहां रहूं और मुझे आदेश दिया है प्रार्थना तथा दान का, जब तक जीवित रहूं। तथा आपनी माँ का सेवक (बनाया है) और उसने मुझे क्रूर तथा अभागा नहीं बनाया है। तथा शान्ति है मुझपर, जिस दिन मैंने जन्म लिया, जिस दिन मरूंगा और जिस दिन पुनः जीवित किया जाऊंगा।”