हमारे जीवन के किसी मोड़ पर, हर कोई बड़े बड़े प्रश्नों को पूछने लगता है: “हमें किसने बनाया?,” और “हम यहां क्यों हैं?”
तो, हमें आखिर किसने बनाया? हम में से अधिकांश
को धर्म से ज्यादा विज्ञान पर पाला गया है, और ईश्वर से अधिक बिग बैंग पर
बिश्वास करवाया गया है। लेकिन किसमे ज़्यादा मतलब बनता है? और क्या कोई
कारण है कि विज्ञान और सृजनवाद के सिद्धांत एक साथ नहीं रह सकते?
बिग बैंग शायद ब्रह्मांड की उत्पत्ति की व्याख्या
कर सकता है, लेकिन यह आदिम धूल के बादल की उत्पत्ति की व्याख्या नहीं
करता। यह धूल के बादल (जो, सिद्धांत के अनुसार, एक साथ आकर्षित हुए,
संकुचित हुए, और फिर विस्फोटित हुए) कहीं से तो आये थे। आख़िरकार, इसमें
सिर्फ हमारी आकाशगंगा ही नहीं, बल्कि ज्ञात ब्रह्मांड में अरबों अन्य
आकाशगंगाओं को बनाने के लिए पर्याप्त पदार्थ थि। तो वह आखिर कहाँ से
आया? किसने, या क्या, आदिम धूल के बादल को बनाया?
इसी तरह, विकास सिद्धांत शायद जीवाश्म रिकॉर्ड की
व्याख्या कर सकता है, लेकिन यह मानव जीवन के सर्वोत्कृष्ट सार-आत्मा की
व्याख्या करने से चूक जाता है। हमारे सब के पास एक है। हम इसकी उपस्थिति
महसूस करते हैं, हम इसके अस्तित्व की बात करते हैं और कभी-कभी इसके मुक्ति
के लिए प्रार्थना भी करते। लेकिन केवल धार्मिक लोग ही बता सकते है कि यह
कहां से आया है। प्राकृतिक चयन का सिद्धांत जीवित चीजों के कई भौतिक
पहलुओं की व्याख्या कर सकता है, लेकिन यह मानव आत्मा की व्याख्या करने में
विफल रहता है।
इसके साथ-साथ, कोई भी जो जीवन की जटिलताओं और ब्रह्मांड का अध्ययन करता है वह निर्माता के निदर्शन को गौर किये बिना नहीं रह सकता।[1]
लोग इन संकेतों को पहचानते हैं या नहीं यह एक अलग बात है—जैसे की वह
पुराणी कहावत है, डिनायल बस मिस्र की एक नदी नहीं है (समझे? डिनायल, सुनने
में लगता है “डी नाइल” … वह नदी जैसी … अच्छा छोडो) बात यह है की, अगर हम
एक चित्र देखे, हमें पता होगा की एक चित्रकार है। अगर हम एक मूर्ति देखे,
हमें पता होगा की एक मूर्तिकार है; एक पात्र है, तो एक कुम्हार भी है। तो
जब हम सृष्टि को देखते हैं, तो क्या हमें नहीं पता होना चाहिए कि एक
सृष्टिकर्ता भी है?
यह अवधारणा कि ब्रह्मांड विस्फोटित हुआ और फिर
बेतरतीब घटनाओ से और प्राकृतिक चयन से सबकुछ पूरी तरह से विकसित हो गया इस
धरना से अलग नहीं है की, कबाड़खाने में बम गिरनेसे, कभी न कभी उनमें से सब
कुछ एक साथ उड़ाकर एक आदर्श मर्सिडीज में बदल जाएगा।
अगर एक बात है तो हम निश्चित रूप से जानते हैं,
वह यह है कि एक नियंत्रित प्रभाव के बिना, सभी प्रणालियाँ अराजकता में बदल
जाती हैं। बिग बैंग और विकासवाद के सिद्धांत इसके ठीक विपरीत प्रस्ताव
रखते हैं, यह की—अराजकता में ही पूर्णता है। क्या यह निष्कर्ष निकालना
अधिक उचित नहीं होगा कि बिग बैंग और विकासवाद नियंत्रित घटनाएं थीं? जो
ईश्वर के द्वारा नियंत्रित थीं?
अरब के बेडौइन एक बंजारे की कहानी बताते हैं जो
एक बंजर रेगिस्तान के बीच में एक नखलिस्तान में एक उत्कृष्ट महल ढूंढता
है। जब वह पूछता है कि यह कैसे बनाया गया था, मालिक उसे बताता है कि यह
प्रकृति की शक्तियों द्वारा बनाया गया था। हवा ने चट्टानों को आकार दिया
और उन्हें इस नखलिस्तान के किनारे तक उड़ा दिया, और फिर उन्हें महल के आकार
में एक साथ मिला दिया। फिर उसने रेत को और बारिश को दरारों में उड़ा दिया
और उन्हें एक साथ जोड़ दिया। इसके बाद, इसने भेड़ के ऊन के धागों को एकसाथ
उड़ाकर कालीनों और टेपेस्ट्री का आकर दिया, लकड़ी को उड़ाकर उसे फर्नीचर,
दरवाजे, खिड़कियां और ट्रिम का आकर दिया, और उन्हें महल में सही स्थानों पर
स्थापित किया। बिजली के झटको ने पिघले हुए रेत को कांच की चादरों में बदल
दिया और उन्हें खिड़की के फ्रेम में लगा दिया, और काली रेत को गलाकर स्टील
बनाया और बाड़ और गेट का आकार दिया सही संरेखण और अमरूपता के साथ। इस
प्रक्रिया में अरबों साल लगे और यह पृथ्वी पर केवल एक ही स्थान पर हुआ -
विशुद्ध रूप से संयोग से।
जब हम चिढ़ कर आंखे घुमाना बंद करेंगे, तब हमें
बात समझ में आएगी। जाहिर है, महल का निर्माण परिकल्पित रूप से किया गया
था, न कि संयोग से। किस पर (या मुद्दे के थोड़ा और पास, किन पर), फिर, हम
अपने ब्रह्मांड और स्वयं जैसे असीम रूप से अधिक जटिलता की वस्तुओं की
उत्पत्ति का श्रेय दे?
सृजनवाद की अवधारणा को खारिज करने का एक अन्य
तर्क केंद्रित है उसपे, जिसे लोग सृष्टि की अपूर्णता समझते हैं। यह
है "अगर यह सब हो रहा है तो ईश्वर कैसे हो सकते हैं?" वाले तर्क। चर्चा के
तहत मुद्दा प्राकृतिक आपदा से लेकर जन्म दोष तक, नरसंहार से लेकर दादी के
कैंसर तक कुछ भी हो सकता है। वह बात नहीं है। बात यह है कि जिसे हम जीवन
के अन्याय के रूप में देखते हैं, उसके आधार पर ईश्वर को नकारना अनुमान करता
है की एक दिव्य आत्मा हमारे जीवन को परिपूर्ण करने के अलावा कुछ भी नहीं
बनाया होगा, और पृथ्वी पर न्याय स्थापित किया होगा।
हम्म ... क्या कोई अन्य विकल्प नहीं है?
हम उतनी ही आसानी से यह प्रस्ताव कर सकते हैं कि
ईश्वर ने पृथ्वी पर जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए नहीं, बल्कि एक परीक्षा के
रूप में डिजाइन किया है, जिसकी सजा या पुरस्कार अगले जन्म में भोगना
है, जहां पर ईश्वर अपने अंतिम न्याय की स्थापना करता है। इस अवधारणा के
समर्थन में हम अच्छी तरह से पूछ सकते हैं कि किसने अपने सांसारिक जीवन में
ईश्वर के पसंदीदा से अधिक अन्याय सहा, जो की ईश्वर के पैगम्बर थे? और हम
किससे स्वर्ग में सबसे ऊंचे स्थानों को अधिकार करने की उम्मीद करते हैं,
अगर वो नहीं जो सांसारिक प्रतिकूलताओं का सामना करने में सच्चा विश्वास
बनाए रखते हैं? तो इस जीवन में कष्ट भोग करने का मतलब ईश्वर का अकृपा पाना
नहीं होता, और एक आनंदमय सांसारिक जीवन का मतलब अगले जीवन में सुंदरता
नहीं होता।
मैं आशा करता हूँ के कि इस तर्क के द्वारा, हम पहले "बड़े प्रश्न" के उत्तर पर सहमत हो सकते हैं। हमें किसने बनाया? क्या हम इस बात से सहमत हो सकते हैं कि यदि हम सृष्टि हैं, तो ईश्वर सृष्टिकर्ता है?
यदि हम अभी भी सहमत नहीं हो सकते, तो शायद ये
जारी रखने का कोई मतलब नहीं है। हालाँकि, जो सहमत हैं, उनके लिए "बड़ा
प्रश्न" नंबर दो पर चलते हैं—हम यहां क्यों हैं? दूसरे शब्दों में, जीवन का
उद्देश्य क्या है?
फुटनोट:
- यहां तक, और लेखक के सभी धार्मिक झुकावों को छोड़कर, मैं दिल से पढ़ने की सलाह देता हूं बिल ब्रायसन की