अतः अल्लाह के रसूल मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अ़लैहि व सल्लम) -जैसा कि हम जानते और विश्वास रखते हैं- बहुत ही ज़्यादा बुद्धिमान, दयालु, कृपालु और महरबान पैगंबर हैं, आपके पवित्र दिल से दयालुता के फव्वारे बहते थे, फिर आपसे मोमिनों (मुसलमानों) ने दयालुता प्राप्त की, तो ईमान के साये में आपस में भाई भाई बन कर प्यार व मोह़ब्बत से रहे, अल्लाह -वह बरकत वाला है और बलन्द है -ही की मोहब्बत में एक दुसरे से मिलते और अल्लाह ही की मोह़ब्बत में जुदा होते थे, अतः वे इस्लामी महान शरीअ़त-जिसे अल्लाह के रसूल मोह़म्मद (सल्लल्ललाहु अ़लैहि वसल्लम) लाए- का पालन करने में बेमिसा़ल थे।